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December 26, 2015

संस्थाक चारिम बैसार (दिनांक 25/12/2015) बैसार स्थल - नरीमन पॉइंट, मुंबई


समस्त सदस्य क' हर्ष के संग सूचित क रहल छी जे कैल्ह संस्थाक चारिम बैसार मुंबई केर नरीमन पॉइंट म' भोर १० बजे सँ १ बजे के बीच संपन्न भेल। बैसार के समय भोरक ९ बजे सँ सुनिश्चित छल मुदा बैसार के मुख्य अतिथि के बाट जोहैत - जोहैत १० बजे सँ बैसार सुरु भेल। बैसारक मुख्य अतिथि अंतिम क्षण में सुचना देलखिन जे ओ आबैय में असमर्थ छथिन। कैल्ह केर बैसार में निन्म मुद्दा पर विस्तार सँ चर्चा भेल;

(१) मिशन विस्तार 
(२) पढ़े  मिथिला - बढे मिथिला 
(३) महिला गृह उद्योग 

कैल्ह मुद्दा पर चर्चा सुरु कराइ सँ पहिने सब सदस्य द्वारा "भाई प्रकाश कमती" के स्वागत कायल गेल। एहि संस्थाक निर्माण में प्रकाश कमती भाई के बहुत अहम भूमिका छलैन। पिछला किछ किन पहिने कुनु कारण बस ओ हमरा सभक संग छोइर देना छलाह, संस्था में हुनकर वापसी संस्थाक भविष्य लेल निक संकेत अछि।

(१) मिशन विस्तार - संस्था के कोना आगा बढ़ायल जाय आर एकरा लेल हमरा सभ के की करबाक चाही ? उपरोक्त मुद्दा पर समस्त सदस्य के उपस्थिति में विस्तार पूर्वक चर्चा भेल, जाहि में सर्व सम्मति स इ तय भेल जे मिशन विस्तार के तहत पहिने राज्य स्तर पर टीम बने, ओकर बाद मिथिला म' जिला स्तर पर टीम बने बाद में टीम के विस्तार प्रखंड स्तर तक कायल जाय। मिशन विस्तार के तहत महाराष्ट्र टीम केर निर्माण भेल आर महाराष्ट्र टीम के कार्यकारिणी लेल किछ पद के सेहो आवंटन भेल;

⬅ राज्य कार्यकारिणी ➡

(महाराष्ट्र)

(१) अंजना झा (संरक्षक) 
(२) श्री अमृत झा (अध्यक्ष)
(३) श्री ललन चौधरी (उपाध्यक्ष)
(४) कोषाध्यक्ष
(५) उमेश कमती (सचिव)
(६) श्री प्रकाश कमती (प्रवक्ता)
(७) राज्य मिडिया प्रभारी

राज्य कार्यकारिणी के कार्यकाल पहिल चरण में ९ महीना सुनिश्चित कायल गेल, ९ महीना के बाद कार्यकारिणी के पुनः गठन कायल जायत जेकर कार्यकाल २ बरख रहत। चर्चा के आगू बढ़बैत एहि मुद्दा पर चर्चा सेहो भेल ले मुंबई में आगा सँ बैसार अलग - अलग क्षेत्र में आयोजित कायल जायत। संगे कुनु क्षेत्र के सदस्य यदि चाहैथ की बैसार हुनका क्षेत्र में होय ते हम सब हुनका क्षेत्र में जाय के बैसार करब। 

प्रकाश जीक आगमन सँ बैसार में बेसी चर्चा हुनके संग भेल बाँकी केर मुद्दा (२)  पढ़े मिथिला - बढे मिथिला (३) महिला गृह उद्योग पर सब गोटा अप्पन - अप्पन बात रखलाह मुदा हल कुनो खास निष्कर्ष तक नै पहुच सकल आगामी बैसार में एही मुद्दा पर विस्तृत चर्चा होयत।

बैसार में उपस्थित होयबाक लेल एक बेर फेर सँ सब गोटे के धन्यवाद.....

मैथिल सेवा संस्थान (टीम) 

जय मिथिला। जय मैथिल। जय मैथिलि।।

संस्थाक चारिम बैसार (दिनांक : 25 /12/2015) बैसार स्थल - नरीमन पॉइंट, मुंबई








December 22, 2015

मिशन विस्तार


सर्वमान्य मैथिल गण ,

जनक, यग्वालय , गौतम , मण्डन , भारती , आयाची , विद्यापति , लोरिक, सलहेश, दीना बद्री के माइट सब दिन स अपन शिक्षा और संस्कृति लेल प्रसिद्ध रहल अछि !

कमला , कोशी , गंडक , कमला बालान , भुतही , अधवारा , बागमती , तिलजुगा , खिरोय , लखनदेई एतेक रास नदी मिल क धरती के सिचैत छैथ  , ओ मिथिला धरती हर क्षेत्र में उर्वरा रहल अछि ,

मुदा मैथिलि के आँगन आई सुन किया अछि , मिथिला के खेत आ दलान सुन किया ?

मैथिलि अपन गति में छैथ मुदा मैथिल ओहि प्रवाह स कात भेल जा रहल छैथ, कारण कि कहु देहाती में एक कहावत अछि ,
" जखने पूत गेल परदेश , देव पितृ सब स गेल "

माई मैथिलि के मोह के छोड़ी मैथिलि पुत्र सब आई सब परदेशी होबा पर मजबूर छैथ, एही में कोनो दु-मत नै जे भी जहाँ छैथ एक - एक गोटे अपन अपन  टैलेंट के बल पर छैथ !

एही टैलेंट सब के सहेज के लेल एक संस्था  अपन डेग बढ़ा रहल अछि, सब मैथिल सब स निवेदन जे माई मैथिलि के सेवा के लेल तैयार होयत इ वट वृक्ष के हिस्सा बनी !!

सोशल मिडिया के दुनिया में अवस्थित असंख्य मैथिल में स किछु मैथिल पुत्र / पुत्री सब मिल क एक संस्था के नीव रखनऊ हे जकड़ नाम अछि "मैथिल सेवा संस्थान " !

संस्था के निर्माण कोनो भी राजनीती स दूर और सामाजिक काज में आगा रहबाक लेल भेल अछि , और एही तरहक सोच रखनिहार मैथिल के जुड़बक लेल आवाह्न करैत अछि , मैथिलि के प्रवाह स दूर होयत मैथिल जन के लेल मैथिल सेवा संस्थान एक निक और कारगर प्लेटफॉर्म सिद्ध होयत !

संस्था अपना विस्तार मिशन के तहत क रहल अछि  जाहि मिशन के नाम अछि "मिशन विस्तार" , एही मिशन के तहत संस्था जहाँ देश के हर राज्य तक पहुंचे के कोशिश क रहल अछि, ओतै मिथिला के हर गाम में पहुंचे , ओहि में संस्था के स्वंय सेवी सब लागल छैथ और सफलता सेहो भेट रहल छैन !

बस अंत में एतबे कहब :

मिथिला माई के पुत्र छी हम, नूतन समाज के सूत्र छी हम,
लक्ष्य विकास के लाइब रहल छी, संगी-सहयोगी ताइक रहल छी !!


धन्यवाद 

दुर्गानाथ झा 
मैथिल सेवा संस्थान 









December 18, 2015

पढ़े मिथिला - बढे मिथिला (भाग - १ )

मिथिला और शिक्षा

शिक्षा के क्षेत्र में मिथिला एक दिन एहन छल जे जकर लोहा स्वंय शंकरचार्य मानने छलाह, ओहि धरती के विद्वता देखि स्वंय भगवन शंकर चाकर बानी एला, जाहि धरती पर कालिदास मुर्ख ज्ञानी बनला, और ज्ञान प्राप्त कालिदास मेघदूत के रचना कएला और ओहि में लिखने छैथ जे "यक्ष बादलो के सहारे अलकापुरी में अपने प्रेमिको को चित्र भेजता है", ओहि समय विज्ञान पुत्र सब ओहि के कवि के कल्पना कहला मुदा आई जखन कोनो सन्देश , चित्र , ऑडियो या वीडियो अपना मोबाइल पर प्राप्त होयत अछि लगैत अछि जे सिर्फ कवि के कल्पना ही नाइ बल्कि मिथिला के विद्व्ता / ज्ञान के प्रकाष्ठा छल जे मिथिला के धरती प्राप्त भेल रहे, मुदा ओहि मिथिला के धरती के आई कि भेल जे सही सब गाम में प्रायमरी स्कूल तक नाइ अछि ?

जाहि गाम के हम सब जहाँ छोड़ी आएल रही ओहि ठाम शायद एक कदम आगा नै बढ़ी पाएल, !
मिथिला आइ शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ किया गेल?

देहाती में एक कहावत अछि जे : जे बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त नै होयत अछि !!
आई गुरु के संख्या भी कम रहल अछि मिथिला मेंकारन स्पस्ट अछि - विद्यार्थी सब 12th / इंटर या अधिक अधिक स्नातक पूरा मिथिला पलायन जाइत छैथ (एहु के कारन स्पस्ट अछि एही आगा पढाई के निक / उचित व्यवस्था नै) और जे जहाँ गेला ओहि ठाम के वासी जाइत छैथ और मिथिला फेर अपन नव पीढ़ी के भविष्य के निर्माण में लगी जाइत अछि , पलायन जब तक नै रुकत तब तक मिथिला के हाल में कोनो सुधार नै होएत !

एयर पोर्ट बनाऊ / फिल्म सिटी बनाऊ या स्मार्ट सिटी मुदा समस्या के हल सम्भंव नै अछि , कते बनायब   एयरपोर्ट , फिल्म सिटी , स्मार्ट सिटी , मुदा 5 करोड़ मैथिल के एहि किछु नै होयत, एकर मतलब नै जे सब नै बनबाक चाही , रोजगार के क्षेत्र में सब भेनाइ सेहो जरुरी अछि , लेकिन मूल कारन जे अछि पलायन के बंद नै होयत , ओहो बंद होए ओकर उपाय के सोचे पड़त  हम सब मैथिल के !!

मिथिला में प्रायमरी लक कौशल विकाश के व्यवस्था के लेल "मैथिल सेवा संस्थान" अपन डेग के आगा बढ़ा रहल अछिसंस्था  सोचल - समझल रणनीति (मिशन ) के तहत काज के प्रारम्भ करत, जाहि के  सफलता लेल संस्था के स्वंयसेवी दिन राईत एक केने छैथ !!

मैथिल और मिथिला के बुनियादी असुविधा के ध्यान में राखी अपन भागीरथी प्रयाश   रहल अछि, अपने सब के  सहयोगक आवश्यकता अछि संस्था के !

हर एक मैथिल निवेदन जे अपने सब संस्था के कदम कदम मिला संस्था के ही नै बल्कि सम्पूर्ण मिथिला के मजबूत करी !

अपने सब मिथिला के भविष्य निर्माण में  कम कम के साल दी, संस्था काज के ओहि एक साल में मूल्यांकन करी !

आऊ संस्था के मिशन के हिस्सा बनु - "मिशन पढ़े मिथिला - बढे मिथिला" में अपना सहयोग करी !!

!! जखन पढ़त मिथिला - तखने बढ़त मिथिला !!

धन्यवाद

दुर्गानाथ झा

#मिशन_पढ़े_मिथिला_बढे_मिथिला_ भाग_1


December 07, 2015

संस्थाक दोसर बैसार (दिनांक : 06/12/2015) बैसार स्थल - नरीमन पॉइंट, मुंबई












संस्थाक दोसर बैसार (दिनांक 06/12/2015) बैसार स्थल - नरीमन पॉइंट मुंबई


समस्त सदस्य के हर्ष के संग सूचित क रहल छी जे कैल्ह संस्थाक दोसर बैसार मुंबई केर नरीमन पॉइंट में दुपहर १२ सँ ५ के बीच संपन्न भेल जाहि में निन्म मुद्दा पर विस्तार सँ चर्चा भेल;

मुद्दा नंबर (१) - संस्था के कोना आगा बढ़ायल जाय आर एकरा लेल हमरा सभ के की करबाक चाही : - उपरोक्त मुद्दा पर समस्त सदस्य के उपस्थिति में विस्तार पूर्वक चर्चा भेल। जाहि में सर्व सम्मति स इ तय भेल जे MSS के आगा बढ़ेबाक लेल निन्म काज पर ध्यान देबाक चाही। 

(क) सोशल मिडिया पर एक्टिवि बढ़ायब 
(ख) इवेंट (जेना रक्तदान शिविर, चिकित्सा शिविर, मुफ्त बच्चा सभ के पढाई में उपयोगी समान केर वितरण) के आयोजन करब
(ग) एरिया बाय एरिया बैसार केर आयोजन करब। आर एक - दुइ प्रारूप राखल गेल जाहि पर अंतिम निर्णय कार्यकारिणी कमिटी केर निर्णय पर निर्भर अछि। 

मुद्दा नंबर (२) - संस्था के आगू बढ़ेबाक लेल फंड केर जोगार कोना कायल जाय : - एहि मुद्दा पर सर्व सम्मति सँ इ तय भेल जे जा धरी संस्थाक पंजीकरण प्रक्रिया पूरा नै होयत कानूनन तौर पर हम सब किनको सहयोग नै ल सकैत छी। पंजीकरण सँ पहिने संस्था का ठाढ़ करबाक लेल कार्यकारिणी केर जतेक सदस्य छैथ ओ ५०० रुपैया / महीना पूरा एक साल तक जमा करता। पंजीकरण भेलाक बाद हम सब बेसी सँ बेसी सदस्य के एहि संस्था संग जोरबाक प्रयाश करब जाहि सँ संस्थाक कोश बढे। पंजीकरण के बाद लोग सब के दान (Donation) देबाक लेल आग्रह सेहो करब। 

मुद्दा नंबर (३) - संस्था केर उद्घाटन कम सँ कम खर्च में कोना कायल जाय : - एहि मुद्दा पर बहुत तरहक चर्चा भेल जाहि में सर्व सम्मति स इ तय भेल जे हम सब उद्घाटन में फालतू के खर्च कराई के बदला स्कुल के बच्चा सब के बीच मुफ्त कॉपी (Notebook), पेन्सिल, कलम के वितरण उद्घाटन दिन करब। वद्घाटन के प्रारूप एहि प्रकारे तय भेल; उद्घाटन के एक दिन पहिने सँ अखंड रामायण पाठ जे २४ घंटा में ख़त्म होयत। अखंड रामायण पाठ ख़त्म भेलाक बाद श्री सत्यनारायण पूजा केर आयोजन पूजा ख़त्म भेला पर महाप्रसाद वितरण आर रात्रि में अतिथि लेल छोट सनक भोज के आयोजन सुनिश्चित भेल। 

मुद्दा नंबर (४) - संस्था केर उदघाटन केर साथ जमीनी स्तर पर कोण काज से सुरुआत कायल जाय :- एहि पर सर्व सम्मति स इ तय भेल जे उद्घाटन के तुरंत बाद हम सब स्कुल के बच्चा सब के बीच मुफ्त कॉपी (Notebook), पेन्सिल, कलम के वितरण करब ओकर बाद जमीनी स्तर पर काज केर सुरुवात करैत एक एहेन गाम के गोद लेब जहि गाम में स्कुल नै होय। गोद लेल गाम मए शिक्षा आर चिकित्सा के जिमेवारी संस्थाक रहत। पहिल चरण में संस्था दरभंगा केर एक गाम गोद लेत, ओहि गाम में यदि संस्था के कार्य निक रहल ते अगला चरण में मिथिलाक सभ जिला सँ एक - एक गाम (बेरा - बेरी) गोद लेबाक सहमति बनल। 

मुद्दा नंबर (५) - पढ़े मिथिला - बढे मिथिला के प्रारूप की होबाक चाही : - एहि पर सब के विचार इ भेल जे (मुद्दा नंबर ४) के तहत संस्था जहि गाम के गोद लेत ओहि गाम के कुनु होनहार विद्यार्थी जिनका आगा पढाई में दिक्कत होइत होय संस्था हुनका आगा पढाई में सहयोग करत मुदा सहयोग लेल एक शर्त रहत ओ शर्त इ जे संस्था जे विद्यार्थी के मदद करत ओय विद्यार्थी कs गाम केर १०-१५ बच्चा के मुफ्त में हर दिन १ सँ २ घंटा केर ट्युसन देबा परत। पढ़े मिथिला - बढे मिथिला के तहत संस्था गाम घर केर स्कुल में कम्प्यूटर शिक्षा केर मुफ्त व्यवस्था पर ध्यान देत मुदा इ एखन सर्वे केलाक बाद तय कायल जायत। पढ़े मिथिला - बढे मिथिला के तहत टैलेंट स्टूडेंट सर्च, कॉलेज सर्वे आर टेस्ट सलेक्शन पर सेहो संस्थाक फोकश रहत। 

मुद्दा नंबर (६) - राष्टीय कार्यकारिणी केर अलावा आब क्षेत्रीय कार्यकारिणी( हर राज्य) केर निर्माण कोना कायल जाय आर ओकर प्रारूप की होबाक चाही :- एहि पर सर्व सम्मति स इ तय भेल जे पिछला शनिवार दिन जे संस्थाक सप्ताहिक बैसार में जे क्षेत्रीय कार्यकारिणी( हर राज्य) के प्रारूप बनल ओ ठीक अछि। 

⬅ राज्य कार्यकारिणी ➡

राज्य प्रभारी / संरक्षक

(१) अध्यक्ष 1
(२) उपाध्यक्ष 1
(३) कोषाध्यक्ष 1
(४) सचिव 2 (जाहि में 1 महिला)
(५) प्रवक्ता 1
(६) राज्य मिडिया प्रभारी

बैसार के अंत में महाराष्ट्र (राज्य कार्यकारिणी) केर निर्माण पर सेहो चर्चा भेल जाहि फलस्वरूप श्री अमृत झा के महाराष्ट्र (राज्य कार्यकारिणी) के अध्यक्ष आर उमेश कमती के महाराष्ट्र (राज्य कार्यकारिणी) के सचिव घोसित कायल गेल संगहि "MSS - मुंबई" नबका Whatsaap ग्रुप केर निर्माण भेल जाहि में आब आगा के पद लेल चर्चा होयत। 

हम सब मुंबई में हरेक महीना एक बैसार के आयोजन करी एहि निर्णय के संग बैसार के समापन भेल। 

मैथिल सेवा संस्थान (टीम)

जय मिथिला। जय मैथिल। जय मैथिलि।। 

November 08, 2015

धनतेरस की पावन कथा


उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनवंतरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। 

इस दिन को मनाने के पीछे धनवंतरी के जन्म लेने की कथा के अलावा, दूसरी कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। 

तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। 

कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतूहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए। 

लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं। 

उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं। 

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। 

पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं। 

विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है ,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा। 

तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। 

इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।


October 20, 2015

मां दुर्गा की नौवीं शक्ति (सिद्धिदात्री)


मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
 
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। 
 
इनके नाम इस प्रकार हैं -
 
1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्‌सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि
 
मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए। 
 
मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करें। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
 
नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
 
सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती।
 
मां के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिए। मां भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है।
 
इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो मां की कृपा का पात्र बनता ही है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करना चाहिए।
 
या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
 
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और मां सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे मां, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।

October 19, 2015

मां दुर्गा की आठवीं शक्ति (महागौरी)


नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। 
 
अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। 4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको। 
 
इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाँये हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। 
 
इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से इनका शरीर काला पड़ गया लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए ये महागौरी कहलाईं। 
 
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः। 
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥
 
ये अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।

मां दुर्गा की सातवीं शक्ति (कालरात्रि)


एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। 
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। 
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
 
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है। 
 
इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। 
 
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है। 
 
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। 
 
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है। 

October 16, 2015

मां दुर्गा की पांचवी शक्ति (स्कंदमाता)


सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। 
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
 
पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। 
 
स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। 
 
इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। 
 
शास्त्रों में इसका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। 
 
उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं। 

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